औरतों का नमाज़ का तरीका अलग क्यूँ
अक्सर ये सवाल उठाए जाते है के औरतों की नमाज का तरीका अलग क्यू ?
नमाज़ का तरीका एक है सिर्फ नबी सल्ललाहू अलैहि वसल्लम का तरीका मान्य है अम्मा खतीजा रजि० अम्मा आयशा रजि० फातिमा रजि० नबी सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के तरीके पर नमाज़ पढ़ती थी
औरतों को मस्जिद में जाने की इजाजत क्यों नहीं दी जाती ?
इस्लाम मे औरतों को मस्जिद मे जाने की इजाजत है और उनको रोकने से मना किया गया है और अफजल उनके लिए घर का कोना है लेकिन हिन्द के मुसलमानों ने इस्लाम की जगह अपने कानून बना रखे है
इस्लाम में मर्द और औरतों की इबादत क्या अलग है ?
इस्लाम मे मर्द और औरतों की इबादत एक जैसी है बस औरतो को इबादत मे कुछ छूट मिली है जैसे हैज मे रोजा नमाज़ छोड़. सकती है रोजा बाद मे पुरा करना होगा जमात के साथ नमाज अनिवार्य नहीं है उनके ऊपर जुमा अनिवार्य नहीं है उनके ऊपर लेकिन ईदैन मे अगर हैज से है तो भी उनको ले जाओ ईदगाह कम से कम दुआ मे शामिल हो वह
जब की कुरान और हदीस में ये साफ साफ लिखा है के अगर औरतें अपने शौहर से मस्जिद जाने की इजाज़त मांगे तो उन्हे ना रोक ?
फिर भी भारतीय मुसलमान अपने नियम कानून बना रखे है
लेकिन दौर ए हालत को देखते हुए जिस तरह से औरतों के अंदर बदलाव आए है, जैसे, बेहयाई, फैशन, (फिटिंग वाले हिजाब पहेनना,) मेकअप, हराम relationship, etc.
बेहायाई - जब वह नमाज़ पढ़ेगी तो सर पर रूपट्टा ओढ़ेगी तो बेहायाई कहा रही
फैशन - फैशन औरत ही करती है
और नमाज की शर्त है सतर ढका होना चाहिए तो वह शतर ढक कर आयेगी
फिटिंग वाले हिजाब तो हिजाब उतार कर भी नमाज पढ़ सकती है अहम शर्त है सतर का ढका होना और मसाजिद मे अलग इंतेजाम होता है औरतो का
मेकअप - नमाज बिना वुजू के नहीं होता
मेकअप धुल जायेगा मेकअप से कोई दिक्कत नमाज मे नहीं है एक दुल्हन जब नमाज़ पढ़ती है तो वह मेकअप मे होती है
हराम रिलेशनशिप का नमाज़ से क्या तालुक
एक तवायफ भी नमाज़ पढ़ती है क्या मस्जिद मे हराम रिलेशनशिप बनाने जा रही है क्या
अजीब फलसफा दे रहे है
इस हिसाब से मेरे according औरतों को बिलकुल भी नहीं जाना चाहिए ?
दीन ए इस्लाम मे हर बात की हद है
अमेरिका यूरोप मे बेहायाई फैशन मेकअप हराम रिलेशनशिप सब आम है लेकिन वहां औरते मस्जिद मे नमाज़ पढ़ती है और आप से ज्यादा दीन जानती है और उनको मस्जिद ने ही बेहायाई फैशन मेकअप हराम रिलेशनशिप से बचा रखा है
क्योंकि जिस तरह आज के ज़माना मे लड़कियां extra class के बहाने Velentines day मानने जाती है, सहेली के घर जाने के बहाने Boy friend से मिलने जाती है, Collage जाने के बहाने Park घूमने जाती है,
इसी तरह लड़कियां मस्जिद जाने के बहाने पता नही कहा जायेगी, और बेशक जिनकी नियत साफ है वो तो मस्जिद ही जायेगी
अजीब दोगलापन है आप वेलेंटाइन डे पर अपनी लड़की को एक्सट्रा क्लास मे क्यो भेजते है यह दिन कोई ढका छुपा तो नहीं है आप खुद बेगैरत है जो जानकर भी जाने देते है सहेली से मिलने के बहाने Boy Friend से मिलने जाती है
तो अपने बच्चों पर नजर रखे कौन सी सहेली है कहा रहती है क्या काम है अपने बच्चों को इतना फ्री क्यो रखे कि आपको पता न चले की क्या गुल खिल रहा है गलती आपकी है कालेज जाने के बहाने पार्क मे जाती है लोकेशन ट्रेस का एप आता है उससे चेक करते रहे वह कहा पर है यानी आप अपनी लड़की को वेलेंटाइन डे मनाने से नहीं रोक पाते आप अपनी लड़की को Boy फ्रेंड्स से मिलने पर नही रोक पाते
आप अपनी लड़की को पार्क मे घुमने पर नही रोक पाते ले देकर मस्जिद मे जाने पर रोकते हो क्योंकि आपकी लड़की भाग जायेगी अजीब चुरन बेचते है आप लोग
लेकिन हमारी औरतों के लिए बाहर जाना बिलकुल भी Safe नहीं है क्योंकि संघी इस इंतजार में रहते है कि कब कोई मुस्लिम लड़की Bhagwa love trap का शिकार हो,
क्या भारतीय मुसलमान नामर्द हो गये है कि उनकी मस्जिद के बाहर संघी उनकी लौंडिया उठाने के लिये खड़े हुये है क्या आपने अपनी बेटीयों को स्कूल कालेज युनिवर्सिटि मार्केट जाना बन कर दिया है क्योंकि यहाँ तो संघी हर समय रहते है
मस्जिद ही वह जगह है जो आपको बेहायाई और बुराई से रोकती है
एक बात ये भी है के कोई शौहर कब तक अपने काम छोड़ कर अपनी बीवी के साथ साथ रहे उसकी हिफाज़त करे ?
5 समय की नमाज़ औरत घर के कोने मे पढ़े लेकिन हर मुसलमान
जुमा
ईदैन
तरावीह
अपनी मस्जिद मे पढ़ता है तो वह अपनी बहन बेटी बीवी को मस्जिद ले जा सकता है
नोट- औरत मस्जिद मे न जाये अजीब अजीब बहाने बनाते है यह भारतीय कुफी वल सुफी वल हनफी अल बरेलवी अल देवबंदी पहली बात हर मस्जिद मे औरत के लिये अलग कमरा अलग वुजूखाना अलग गेट हो
दुसरी बात 5 समय की नमाज़ वह अपने घर के कोने मे पढ़े
तीसरी बात कम से कम जुमा मे आने वाले लोग अपनी महरम को लेकर आये
चौथी बात तरावीह मे आने वाले लोग अपनी महरम को लेकर आये
पांचवी बात ईदैन मे अपनी महरम को ले कर आये क्योंकि यह नमाज़ सब अपनी मस्जिदो मे ही पढ़ते है
बाकी 5 समय की नमाज़ तो जो कही काम मे है वही पढ़ते है और कोई औरत अगर मस्जिद मे नमाज़ पढ़ने आती है तो वह उस कमरे मे जायेगी जो औरतो के लिये खास है तै मर्दो से खलत मलत होने का सवाल नहीं है और फिर बेहायाई कहा हुई वह चाहे फिटिंग के नकाब मे है या मेकअप मे हो
कुछ लोग तो यह सोचते है कि औरत मर्दो के साथ कंधा मिलाकर नमाज़ पढ़ेगी
अबे चमन बहारो उनके लिए मस्जिद मे अलग इंतेजाम होता है पर्दें के साथ
मेन बात यह है कि मस्जिद मे इंतेजाम करना नहीं है और बहाने तरह तरह के
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